من آخر السجن، طارت كفّ أشعاري | |
تشد أيديكم ريحا ..على نار | |
أنا هنا، ووراء السور، أشجاري | |
تطوّع الجبل المغرور.. أشجاري | |
مذ جئت أدفع مهر الحرف، ما ارتفعت | |
غير النجوم على أسلاك أسواري | |
أقول للمحكم الأصفاد حول يدي: | |
هذي أساور أشعاري و إصراري | |
في حجم مجدكم نعلي، و قيد يدي | |
في طول عمركم المجدول بالعار: | |
أقول للناس ،للأحباب: نحن هنا | |
أسرى محبتكم في الموكب الساري | |
في اليوم، أكبر عاما في هوى وطني | |
فعانقوني عناق الريح للنار |