أصديقتي إن الكتابة لعنةٌ
فانجي بنفسك من جحيم زلازلي | |
فكّرت أنّ دفاتري هي ملجأي | |
ثم اكتشفت بأن شعري قاتلي | |
وظننت أن هواك ينهي غربتي | |
فمررت مثل الماء بين أناملي | |
بشّرت في دين الهوى.. لكنهم | |
في لحظة، قتلو جميع بلابلي | |
لا فرق في مدن الغبار.. صديقتي | |
ما بين صورة شاعر.. ومقاول.. | |
*** | |
يا ربِّ: إن لكل جرحٍ ساحلاً.. | |
وانا جراحاتي بغير سواحل.. | |
كل المنافي لا تبدّد وحشتي | |
ما دام منفاي الكبير.. بداخلي |